टेलीविज़न के प्राइम टाइम की हर सनसनी डिबेट आजकल २ छोर के लोग हमारे सामने रखती है। एक दूसरे की विचारधारा का शिकार करते ये लोग कभी ये भी भूल जाते हैं की अंततः ये सब किया किस चीज के लिए जा रहा है। क्यूंकि ज्यादातर डिबेट्स का मुख्य विषय देश और देश के खिलाफ बाहरी और अंदरूनी ताक़तोंका रचा षड़यंत्र ही बचा है आजकल। यहाँ रचनात्मक कुछ भी नहीं होता। निकर्ष पे आना असंभव। एंकर की माने तो वो खुद भी एक विचारधारा लेके चल रहा होता है। आखरी में नोएडा, दिल्ली या गुरुग्राम के किसी स्टूडियो से उठकर ये लोग किसी उच्च मानक रेस्ट्राँ में बैठकर वाइन से अधभरे प्यालोंकी 'चियर्स' वाली खनखनाहट के पीछे वो चौथा स्तंभ भूल चुके है जो देश-निर्माण में सबसे अहम् माना गया था।
रिपब्लिक टीवी नया चैनल है। अर्नब गोस्वामी साहब को कौन नहीं जानता? इनके डिबेट्स में अगर आप सबकी नजर में गलत है तो बोल ही नहीं सकते। ऐसा लगता है मानो ये हमारी आवाज बन के उभरे है। क्यूंकि अक्सर जो बातें हम देश विरदोही ताक़तोंको (जो शायद बीएस हमारी नजर में देश विरोधी है) सुनना चाहते है, ये अच्छे अंग्रेजी शब्दोंमें सुना ही देते है। यहाँ बेशर्मी की हद पार करते मैंने कई बड़े लोगोंको देखा है। देश पर जब भी बात होती है तो कम्युनिस्ट नेताओंके बयान शर्मनाक से लगते है। JNU जैसे विश्वविद्यालयोंके प्रोफ़ेसर भी हमें शर्मसार करनेमें कोई कसर नहीं छोड़ते। हम जो टैक्स के रूप में भारतीय सरकार तक आमदनी का कुछ हिस्सा पहुंचाते है, वो मानो शायद किसी अच्छे काम आ ही न रहा हो।
ऐसे में हम सब को जरुरत थी किसीको लाने की जो हमारी बात रख सके। जो ये कह सके की हमारी पड़ोस वाली गली का वो गरीब घर का लड़का जो आर्मी में २-३ साल पहले भर्ती हुआ है वो 'अत्याचारी' नहीं। वो कश्मीर की लड़कियोंके साथ जबरदस्ती करने वहां नहीं गया है। कश्मिरियोंके लिए उसके दिल में कोई नफरत भर के नहीं भेज रहा। कोई ये भी बता दे की उस लड़के को अगर पैसा और व्यवस्था की सेवायें कम दाम में चाहिए होती तो वो इतने दम के साथ राजनीती का पेशा अपना ही सकता था। राशन की कालाबाजारी भी उसने ऐसे कलेजे के साथ आराम से की होती। अपने माँ बाप के पास रहकर घर की रोटी खा कर वो तुम्हे गरिया भी सकता था। देशप्रेम उसमें तब ही से था जब उसने स्काउट की वर्दी के लिए बचपन में घर मे अनबन की थी। स्टूडियो के पैनल में बैठे हुर्रियत के आशिक शायद ये नहीं जानते वहाँ पहुचानेमें उस लड़के के माँ बाप ने क्या क्या श्रम उठाये होंगे। ये बातें इन्हे समझने वाला भी तो कोई चाहिए ही था।
कुछ महीनो पहले मैंने टीव्ही डिबेट में पहली बार मेजर गौरव आर्या को सुना। सीधी और सटीक भाषा। आर्मी वाला चौड़ापन। करीब करीब अर्नब की ही उम्र का ये आदमी सच्चाई के साथ इन महान पैनलिस्टोंकी धज्जियां उड़ाना जानता था। आर्मी की बात रखने काम पहली बात सही आदमी ने उठाया है। मेजर गौरव आर्या हमारा गौरव हैं। मै बता हूँ कैसे .....
हाल ही में 'कुलभूषण जाधव' पे एक डिबेट हुई। जिसमें पाकिस्तानी पैनेलिस्ट ने कहा की,'कुलभूषण ने अपना गुनाह काबुल कर लिया है और आप उसका स्टेटमेंट देख सकते है। ' इसका जवाब देते हुए मेजर साहब ने कहा की,"आप मुझे एक घंटा दे दीजिये, मै आप से स्टेटमेंट निकलवा दूंगा की आप लश्कर ए तय्यबा के लिए काम करते हैं।' मेजर साहब की ये बात तालियाँ पिटवाने के लिए नहीं, हमारी अपनी मानसिकता के काम आएगी। उनकी जुनैद मट्टू, शबनम लोन, इत्यादि हुर्रियत प्रेमी लोगोंसी कही हुई बातें यूट्यूब पे आसानी से मिल जाएंगी। और ये बातें आप को सही लगने की वजह बता दूँ, वजह ये है की हम और आप वहीँ सोचते है जो हमारी प्रिय भारतीय आर्मी सोचती है।
मेजर गौरव आर्या १७वी बटालियन (कुमाउ रेजिमेंट ) के हिस्सा रहे है। ७ साल आर्मी में रहने के बाद उनको रिटायरमेंट लेनी पड़ी। वजह थी फेफड़ो का कमजोर होना। विचारोंकी कट्टरता जो उनमें है वो हमारे देश के लिए जरुरी भी है। आर्मी वाला गुरुर किसको अच्छा नहीं लगता? मेजर वो है और वो कहते है जो हम बनना चाहते हैं और कहना चाहते है। या फिर शायद हमें बनना चाहिए और कहना चाहिए। उनकी कही ये बात को जरा गौर से पढियेगा।
अंततः एक और बात कह दू, कभी मेजर साहब ने बोली हुई बातें सुनन या फिर उनका ब्लॉग पढ़ना। वो खत भी पढ़ना जो उन्होंने बुरहान वाणी को लिखा था। उसे कहा था की वो देश के लिए तब ही मर गया था जब उसने बन्दुक उठाली थी।
हुर्रियत के नेताओंके बेटे-बेटी क्या कर रहे हैं एक बार आप खुद इंटरनेट पढ़ले और सोचें की सिर्फ गरीब का बच्चा की क्यों जिहाद करे?
मेजर गौरव आर्या का ब्लॉग
रिपब्लिक टीवी नया चैनल है। अर्नब गोस्वामी साहब को कौन नहीं जानता? इनके डिबेट्स में अगर आप सबकी नजर में गलत है तो बोल ही नहीं सकते। ऐसा लगता है मानो ये हमारी आवाज बन के उभरे है। क्यूंकि अक्सर जो बातें हम देश विरदोही ताक़तोंको (जो शायद बीएस हमारी नजर में देश विरोधी है) सुनना चाहते है, ये अच्छे अंग्रेजी शब्दोंमें सुना ही देते है। यहाँ बेशर्मी की हद पार करते मैंने कई बड़े लोगोंको देखा है। देश पर जब भी बात होती है तो कम्युनिस्ट नेताओंके बयान शर्मनाक से लगते है। JNU जैसे विश्वविद्यालयोंके प्रोफ़ेसर भी हमें शर्मसार करनेमें कोई कसर नहीं छोड़ते। हम जो टैक्स के रूप में भारतीय सरकार तक आमदनी का कुछ हिस्सा पहुंचाते है, वो मानो शायद किसी अच्छे काम आ ही न रहा हो।
ऐसे में हम सब को जरुरत थी किसीको लाने की जो हमारी बात रख सके। जो ये कह सके की हमारी पड़ोस वाली गली का वो गरीब घर का लड़का जो आर्मी में २-३ साल पहले भर्ती हुआ है वो 'अत्याचारी' नहीं। वो कश्मीर की लड़कियोंके साथ जबरदस्ती करने वहां नहीं गया है। कश्मिरियोंके लिए उसके दिल में कोई नफरत भर के नहीं भेज रहा। कोई ये भी बता दे की उस लड़के को अगर पैसा और व्यवस्था की सेवायें कम दाम में चाहिए होती तो वो इतने दम के साथ राजनीती का पेशा अपना ही सकता था। राशन की कालाबाजारी भी उसने ऐसे कलेजे के साथ आराम से की होती। अपने माँ बाप के पास रहकर घर की रोटी खा कर वो तुम्हे गरिया भी सकता था। देशप्रेम उसमें तब ही से था जब उसने स्काउट की वर्दी के लिए बचपन में घर मे अनबन की थी। स्टूडियो के पैनल में बैठे हुर्रियत के आशिक शायद ये नहीं जानते वहाँ पहुचानेमें उस लड़के के माँ बाप ने क्या क्या श्रम उठाये होंगे। ये बातें इन्हे समझने वाला भी तो कोई चाहिए ही था।
कुछ महीनो पहले मैंने टीव्ही डिबेट में पहली बार मेजर गौरव आर्या को सुना। सीधी और सटीक भाषा। आर्मी वाला चौड़ापन। करीब करीब अर्नब की ही उम्र का ये आदमी सच्चाई के साथ इन महान पैनलिस्टोंकी धज्जियां उड़ाना जानता था। आर्मी की बात रखने काम पहली बात सही आदमी ने उठाया है। मेजर गौरव आर्या हमारा गौरव हैं। मै बता हूँ कैसे .....
हाल ही में 'कुलभूषण जाधव' पे एक डिबेट हुई। जिसमें पाकिस्तानी पैनेलिस्ट ने कहा की,'कुलभूषण ने अपना गुनाह काबुल कर लिया है और आप उसका स्टेटमेंट देख सकते है। ' इसका जवाब देते हुए मेजर साहब ने कहा की,"आप मुझे एक घंटा दे दीजिये, मै आप से स्टेटमेंट निकलवा दूंगा की आप लश्कर ए तय्यबा के लिए काम करते हैं।' मेजर साहब की ये बात तालियाँ पिटवाने के लिए नहीं, हमारी अपनी मानसिकता के काम आएगी। उनकी जुनैद मट्टू, शबनम लोन, इत्यादि हुर्रियत प्रेमी लोगोंसी कही हुई बातें यूट्यूब पे आसानी से मिल जाएंगी। और ये बातें आप को सही लगने की वजह बता दूँ, वजह ये है की हम और आप वहीँ सोचते है जो हमारी प्रिय भारतीय आर्मी सोचती है।
मेजर गौरव आर्या १७वी बटालियन (कुमाउ रेजिमेंट ) के हिस्सा रहे है। ७ साल आर्मी में रहने के बाद उनको रिटायरमेंट लेनी पड़ी। वजह थी फेफड़ो का कमजोर होना। विचारोंकी कट्टरता जो उनमें है वो हमारे देश के लिए जरुरी भी है। आर्मी वाला गुरुर किसको अच्छा नहीं लगता? मेजर वो है और वो कहते है जो हम बनना चाहते हैं और कहना चाहते है। या फिर शायद हमें बनना चाहिए और कहना चाहिए। उनकी कही ये बात को जरा गौर से पढियेगा।
लड़ाई सिर्फ आर्मी की नहीं होती, पुरे देश की होती है। हम सबको इसे साथ में लड़ना होगा!ये महज एक आम बात नहीं जो एक आर्मी अफसर कह दे। ये वो बात है जो हमें समझ ने की जरुरत है। तब जब आप भारतीय बनावट की कोई चीज को ठुकराकर चायनीज चीज ले और उन लोगोंको पैसा पहुंचाएं जो पाकिस्तान को पैसा दे कर अपने ही देश पे हमला करवाएं। बदलाव इतने भी आसानीसे नहीं आते। का और हमारा भी मानना है हम धीरे धीरे इसको अपनेमें समाले। कुछ बचे न बचे, ये देश तो बचना चाहिए!
अंततः एक और बात कह दू, कभी मेजर साहब ने बोली हुई बातें सुनन या फिर उनका ब्लॉग पढ़ना। वो खत भी पढ़ना जो उन्होंने बुरहान वाणी को लिखा था। उसे कहा था की वो देश के लिए तब ही मर गया था जब उसने बन्दुक उठाली थी।
हुर्रियत के नेताओंके बेटे-बेटी क्या कर रहे हैं एक बार आप खुद इंटरनेट पढ़ले और सोचें की सिर्फ गरीब का बच्चा की क्यों जिहाद करे?
मेजर गौरव आर्या का ब्लॉग
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